बागपत से ‘आंचल’ की उड़ान: अब सार्वजनिक जगहों पर स्तनपान होगा सहज और सम्मानजनक
बागपत, 5 जून 2025 — मां बनना सौभाग्य है, लेकिन जब एक मां अपने नवजात को भीड़भाड़ वाले पब्लिक प्लेस पर दूध पिलाने के लिए छुपने की जगह तलाशती है, तो सोचिए उस मां के मन में क्या चलता होगा? शर्म, असहजता, और समाज के ताने! लेकिन अब ये सब बदलेगा, कम से कम उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले में तो ज़रूर।
‘आंचल’ के साये में, मातृत्व को मिलेगा सम्मान
बागपत जिला प्रशासन ने एक ऐसा कदम उठाया है जो ना केवल महिलाओं के सम्मान की बात करता है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और पूरे समाज की सोच को भी एक नई दिशा देता है। ‘आंचल’ नाम की इस पहल के तहत प्रदेश का पहला स्तनपान कक्ष अब बड़ौत बस डिपो पर तैयार हो रहा है।
डीएम अस्मिता लाल की सोच से निकली यह पहल 9 जून को जनता के सामने आएगी, और पूरे प्रदेश के लिए रोल मॉडल बन सकती है।
350 किलो प्लास्टिक, 170 किलो स्क्रैप, 15 किलो लकड़ी — लेकिन मक़सद सिर्फ एक: मातृत्व को मिले इज़्ज़त।
इस ब्रेस्टफीडिंग बूथ को पूरी तरह से रिसाइकल्ड मटेरियल से बनाया जा रहा है। यानी पर्यावरण का भी ध्यान, और समाज की ज़रूरत का भी। लिटिल फीट फाउंडेशन, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन और यूनिसेफ जैसे संगठनों की मदद से इसे मूर्त रूप दिया गया है।
बड़ौत से शुरू, पूरे प्रदेश तक पहुंचेगा संदेश
बड़ौत बस डिपो हर दिन हजारों यात्रियों का ठिकाना है। ऐसे में जब वहां महिलाएं अपने बच्चों को खुले दिल से, बिना झिझक दूध पिलाएंगी, तो समाज का नजरिया बदलेगा। मां को राहत, बच्चे को पोषण — और पूरा परिवार करेगा गर्व।
“अब महिलाएं घर से निकलेंगी निडर होकर” — डीएम अस्मिता लाल
डीएम का साफ़ कहना है कि “मां और बच्चे की सेहत सिर्फ परिवार नहीं, पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है।” जब महिलाओं को ऐसी सुविधा मिलेगी तो वो शिक्षा, रोजगार, और आत्मनिर्भरता की राह पर निडर होकर आगे बढ़ेंगी।
आंचल का असर सिर्फ दीवारों में नहीं रहेगा, सोच में भी दिखेगा बदलाव
हमारी मां-बहनों को अब यह सोचकर कोना नहीं ढूंढना होगा कि बच्चा भूखा है लेकिन सबकी नज़रें उन्हें देख रही हैं। यह बूथ सिर्फ एक कमरा नहीं, एक सोच है — कि स्तनपान शर्म की नहीं, सम्मान की बात है।
लैंगिक समानता, पारिवारिक सहयोग और महिला सशक्तिकरण का तगड़ा कॉम्बो
आंचल से न सिर्फ महिलाएं, बल्कि उनके पति, पिता, भाई भी समझेंगे कि जब मां को सहूलियत मिलती है, तो पूरा समाज आगे बढ़ता है। पारिवारिक रिश्ते मजबूत होते हैं, और अगली पीढ़ी स्वस्थ और सशक्त बनती है।
तो ध्यान रखिए 9 जून का दिन — जब बड़ौत बस डिपो पर सिर्फ एक बूथ नहीं खुलेगा, बल्कि खुलेगा एक सोच का नया दरवाज़ा।
जिस समाज में मां को सम्मान मिलता है, वही समाज वाकई विकसित होता है।
और बागपत अब उसी रास्ते पर चल पड़ा है।