रिपोर्ट : रामनरेश ओझा
उरई ( jalaun News ) भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि पर अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा जनपद जालौन के जिला अध्यक्ष महेश चंद्र विश्वकर्मा की अध्यक्षता में एस बी एस आइडियल पब्लिक स्कूल तुलसी धाम के पीछे गोष्ठी का आयोजन किया गया ।
जिसमें भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की फोटो पर माल्यार्पण के श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। गोष्ठी में अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के प्रदेश के पदाधिकारी रामलाल विश्वकर्मा ने कहा की विश्वकर्मा वंशज पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भारत के सातवें राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई 1982 से 25 जुलाई 1987 तक देश के सर्वोच्च पद पर कार्यरत रहे जिससे विश्वकर्मा समाज का सम्मान बढ़ा।
आज उनकी पुण्यतिथि मनाकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। जिला अध्यक्ष महेश चंद्र विश्वकर्मा ने कहा कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का पहले नाम जनरैल सिंह था। इनका जन्म 5 मई 1916 में पंजाब प्रांत के संधवा गांव में सिख समुदाय के विश्वकर्मा वंश में हुआ था।इनके पूर्वज लकड़ी का काम करते थे। जनरैल सिंह को गुरु ग्रंथ साहब और धार्मिक ग्रंथों का बहुत ज्ञान था। इसलिए इन्हें ज्ञानी की उपाधि मिली।
राजनैतिक क्षेत्र में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा इसलिए उन्होंने अपना नाम जनरैल सिंह से बदलकर ज्ञानी जैल सिंह रखा। प्रांतीय सचिव नवीन विश्वकर्मा और जिला महासचिव इंद्रजीत विश्वकर्मा ने संयुक्त रूप से कहा कि विश्वकर्मा समाज में महान बिभूतियां है। विश्वकर्मा समाज वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत आगे रहा है चाहे कोई भी अद्भुत दिव्य संरचना हो उसे विश्वकर्मा ने ही बनाया है। लेकिन विश्वकर्मा के इतिहास को छिपाया गया है इसलिए आज विश्वकर्मा समाज पीछे है।
आज संगठन के जरिए विश्वकर्मा समाज के इतिहास को सार्वजनिक किया जा रहा है जिससे विश्वकर्मा समाज में चैतना जाग्रत हो रही है। जितेंद्र विश्वकर्मा अध्यापक और योगेन्द्र विश्वकर्मा अध्यापक ने कहा कि विश्वकर्मा वंशज ज्ञानी जैल सिंह भारत के राष्ट्रपति रहे। इससे विश्वकर्मा समाज का गौरव बढ़ा है। हमें समय समय पर समाज के गौरवशाली पुरुषों का याद करते रहना चाहिए तो हमारा इतिहास जिंदा रहेगा। उन्होंने कहा कि जिस समाज का इतिहास नहीं होता वो समाज बहुत नीचे पड़ा होता है।
प्रयाग नारायण उर्फ बादशाह विश्वकर्मा व पूर्व एस आई संतराम विश्वकर्मा ने कहा कि विश्वकर्मा समाज के लोगों को आपसी मतभेद मिटाकर एक साथ रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज यदि पूर्व मंत्री रामासरे विश्वकर्मा का संगठन काम न कर रहा होता तो शायद पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को भी नहीं जान पाते कि ये विश्वकर्मा वंशज थे। उन्होंने कहा कि इसी तरह न जाने कितनी विश्वकर्मा समाज की विभूतियां किस किस क्षेत्र में नाम रोशन कर चुकी हैं और वर्तमान में नाम रोशन कर रहीं हैं लेकिन जाति छुपाए हुए है।
आज नहीं तो कल उनकी पहचान होगी। उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा समाज के लोगों को अपना सरनेम विश्वकर्मा लिखना चाहिए और विश्वकर्मा समाज पर गर्व करना चाहिए। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित गोष्ठी में उपस्थित विश्वकर्मा समाज के लोगों ने अपने अपने विचार रखे।

Author: भूपेन्द्र सिंह कुशवाहा
पेशे से पत्रकार , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया एवं विभिन्न न्यूज़ पोर्टल का अनुभव, सभी चैनलों का अपना अपना एजेंडा लेकिन मेरी विचारधारा स्वतंत्र पत्रकार की "राष्ट्र हित सर्वप्रथम"