रिपोर्ट:दिलीप कुमार
कृषि में युवाओं को बनाए रखने के लिए उन्हें आकर्षित करने के उद्देश्य से आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज ,अयोध्या उत्तर प्रदेश से संचालित कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती पर आर्या परियोजना के अंतर्गत पांच दिवसीय मधुमक्खी पालन विषय पर रोजगारपरक प्रशिक्षण का आयोजन दिनांक 4 से 8 मार्च 2024 में किया गया। जिसमें जनपद के 20 नवयुवक एवं युवतियों ने प्रतिभाग लिया।
केंद्र के पौध सुरक्षा वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण कोर्स कोआर्डिनेटर डॉ प्रेम शंकर ने प्रशिक्षणर्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि मधुमक्खी पालन कृषि पर आधारित घरेलू लाभकारी लघु उद्यम है। इससे खेतिहर किसान, भूमिहीन किसान, महिलाएं, श्रमिक एवं बेरोजगार युवक एवं युवतियां कम समय में वह कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। वैसे तो देश में मौन पालन की अपार संभावनाएं हैं लेकिन विशेष कर इस क्षेत्र का मौसम मधुमक्खी पालन के लिए अनुकूल है एवं यहां पर शहद उत्पादन की व्यापक संभावना है संभावनाएं हैं।
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक पशु विज्ञान डॉ डी के श्रीवास्तव ने प्रशिक्षणर्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि क्रियाएं लघु व्यवसाय से बड़े व्यवसाय में बदलती जा रही हैं। कृषि और बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ रहा है, जबकि कुल कृषि योग्य भूमि घट रही है। कृषि के विकास के लिए फसल, सब्जियां और फलों के भरपूर उत्पादन के अतिरिक्त दूसरे व्यवसायों से अच्छी आय भी जरूरी है। मधुमक्खी पालन एक ऐसा ही व्यवसाय है, जो मानव जाति को लाभान्वित कर रहा है। यह एक कम खर्चीला घरेलू उद्योग है। इसमें आय, रोजगार व वातावरण शुद्ध रखने की क्षमता है। यह एक ऐसा रोजगार है, जिसे समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं।
पादप प्रजनन एवं अनुवांशिकी वैज्ञानिक डॉ वी बी सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि मधुमक्खियों द्वारा फसलों में कृषि परागण से कृषि उपज को बढ़ाने फसल संवर्धन एवं पादप आनुवांशिक संसाधनों का संरक्षण होने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी होता है। अंतः खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के साथ-साथ कृषकों के आय हेतु सतत कृषि के निवेश का मूल आधार मधुमक्खी पालन है।इसके साथ ही मधुमक्खियों से फूलों में पर-परागण होने के कारण फसलों की उपज में लगभग एक चौथाई अतिरिक्त बढ़ोत्तरी हो जाती है।
केंद्र की गृह विज्ञान वैज्ञानिक डॉ अंजलि वर्मा ने प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणर्थियों को शहद पर चर्चा करते हुए कहा कि
शहद मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित एक पौष्टिक, स्वस्थ और प्राकृतिक भोजन है। इसके लाभ स्वीटनर के रूप में इसके उपयोग से कहीं अधिक हैं क्योंकि इसमें कई खनिज, एंजाइम, विटामिन और प्रोटीन होते हैं जो अद्वितीय पौष्टिक और ऑर्गेनोलेप्टिक गुण प्रदान करते हैं। प्रशिक्षण के अंत में शस्य वैज्ञानिक हरिओम मिश्र ने बताया कि मधुमक्खी पालन, कृषि व बागवानी उत्पादन बढ़ाने की क्षमता भी रखता है। मधुमक्खियां समुदाय में रहने वाली कीट वर्ग की जंगली जीव हैं।
इन्हें उनकी आदतों के अनुकूल कृत्रिम गृह (हाईव) में पालकर उनकी बृद्धि करने तथा शहद एवं मोम आदि प्राप्त करने को मधुमक्खी पालन या मौन पालन कहते हैं। मधुमक्खी पालन से शहद एवं मोम के अतिरिक्त अन्य उत्पाद, जैसे गोंद (प्रोपोलिस, राॅयल जेली, डंक-विष) भी प्राप्त होते हैं। इस अवसर पर केंद्र के कर्मचारियों में जे पी शुक्ला निखिल सिंह,रवि शंकर त्रिपाठी प्रहलाद सिंह एवं प्रशिक्षणर्थियों में सुशील ,प्रमोद, अनिल ,राम जनक आदि उपस्थित रहे।