“हम बनाते हैं, पहचान कोई और ले जाता है” — DM की पहल ने दिया बागपत की महिला बुनकरों को न्याय… 70 महिला बुनकरों की किस्मत बदली: अब दुनिया जानेगी उनका हुनर
बागपत, 06 दिसंबर 2025 — जनपद में हैंडलूम उद्योग और पारंपरिक बुनकर संस्कृति को नई पहचान दिलाने की दिशा में जिलाधिकारी अस्मिता लाल ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। शनिवार को खेकड़ा तहसील दिवस के अवसर पर आयोजित विशेष शिविर में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 70 महिला बुनकरों के बुनकर कार्ड बनवाए गए और जीआई ऑथराइज्ड यूजर पंजीकरण की प्रक्रिया पूर्ण की गई। इस कदम से महिलाओं को आधिकारिक बुनकर की पहचान मिली है और बागपत के हैंडलूम उत्पाद को GI टैग दिलाने की दिशा में मजबूत आधार तैयार हुआ है।
भारत दुनियाभर में 95 प्रतिशत हाथ से बुने कपड़े बनाता है जिसमें 72 प्रतिशत योगदान महिलाएं करती हैं। ये सभी महिला बुनकर वर्षों से अपने घरों में कपड़ा बुनती रही हैं, डिजाइन तैयार करती हैं और धागे का पूरा काम संभालती हैं, लेकिन उनके नाम की कोई आधिकारिक पहचान नहीं थी। बाजार में उनके बनाए उत्पाद किसी और नाम से बिक जाते थे, जबकि मेहनत उनकी होती थी। एक महिला ने कहा, “हम बनाते हैं, मगर हमारा नाम कोई नहीं लेता। हम कलाकार नहीं, बस सस्ते लेबर-मजदूर कहलाते हैं।” इस स्थिति का आकलन कर ही जिलाधिकारी ने स्पष्ट कहा कि यदि कला और मेहनत उनकी है तो पहचान भी उन्हीं की होनी चाहिए। इसी सोच के साथ आज का यह शिविर आयोजित किया गया।
बुनकर कार्ड मिलने से महिलाओं की पहचान अब बाजार तक पहुंचेगी और हथकरघा विभाग की योजनाओं—धागे पर छूट, प्रशिक्षण, लोन, मार्केटिंग सहायता आदि—का लाभ उन्हें सीधे मिलेगा। वहीं मौके पर ही बुनकरों का पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना, पीएम सुरक्षा बीमा योजना, हथकरघा बुनकर विद्युत सब्सिडी योजना आदि में पंजीकरण हेतु जानकारी दी गई। महिलाओं ने बताया कि पहली बार उन्हें महसूस हुआ है कि उनका कौशल केवल घरेलू काम नहीं, बल्कि एक सम्मानित पारंपरिक कला है जिसे देश–दुनिया में पहचान मिल सकती है। प्रशासन की इस पहल ने उन्हें आत्मविश्वास और सम्मान दोनों दिया है।
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शिविर में कई बुज़ुर्ग महिलाएँ भी मौजूद थीं जो दशकों से बुनाई करती आई हैं। पंजीकरण के समय एक बुज़ुर्ग महिला ने अपने हाथ से बुना दुपट्टा जिलाधिकारी को दिखाते हुए भावुक होकर कहा, “मेरे हाथ कांपते हैं, लेकिन धागा अभी भी मेरा साथ देता है। आज पहली बार लग रहा है कि मेरी कला कहीं दर्ज होगी।” जिलाधिकारी ने मुस्कुराकर कहा, “आपका हुनर बागपत की पहचान बनेगा।” इस संवाद ने शिविर में मौजूद सभी महिलाओं को गर्व और प्रेरणा से भर दिया।
जिलाधिकारी ने इस पूरी पहल को “महिला सम्मान, परंपरा संरक्षण और आर्थिक आत्मनिर्भरता” के संयुक्त मॉडल के रूप में विकसित किया है। बुनकर कार्ड से पहचान मिली, जीआई ऑथराइज़्ड यूजर बनने से कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित हुई और भविष्य में GI टैग मिलने से बागपत हैंडलूम के प्रीमियम बाजारों तक पहुंचने की राह तैयार हुई। यह तीन-स्तरीय मॉडल महिलाओं को दीर्घकाल में एक बड़े आर्थिक परिवर्तन से जोड़ने की क्षमता रखता है।
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GI पंजीकरण प्रक्रिया सरल लेकिन महत्वपूर्ण है। इसके लिए फॉर्म GI-3A भरकर मात्र 10 रुपये का शुल्क जमा किया जाता है। आवेदन के साथ यह प्रमाण देना होता है कि उत्पादक संबंधित क्षेत्र में पारंपरिक उत्पाद का निर्माण करता है। यह आवेदन चेन्नई स्थित GI रजिस्ट्री को भेजा जाता है और पंजीकरण 10 वर्षों के लिए मान्य रहता है। प्रशासन ने बताया कि आज किए गए सभी आवेदन निर्धारित राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार किए गए हैं।
बागपत प्रशासन इससे पहले जिले के गुड़, रटौल आम और होम फर्निशिंग को GI टैग दिला चुका है। इन उत्पादों को यह पहचान मिलने के बाद उनकी बाजार में मांग बढ़ी है, नकली उत्पादों की रोकथाम संभव हुई है और स्थानीय किसानों व कारीगरों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। खासकर रटौल आम की अंतरराष्ट्रीय मांग ने जिले की कृषि अर्थव्यवस्था को नई मजबूती दी है। अब बागपत की बालूशाही, छुआरे के लड्डू और हैंडलूम को GI टैग दिलाने की दिशा में प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है।
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GI टैग मिलने से बागपत हैंडलूम की ब्रांडिंग और मजबूत होगी। स्थानीय स्तर पर यह उत्पाद लंबे समय से पहचाना जाता है, लेकिन GI टैग के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसे अतिरिक्त विश्वसनीयता मिलेगी। इससे बुनकरों को बेहतर कीमत प्राप्त होगी, नकली उत्पादों पर रोक लगेगी और गुणवत्ता व डिजाइन की विशिष्टता संरक्षित रहेगी। बागपत हैंडलूम की बुनाई, धागे और रंग संयोजन की शैली इसे अन्य क्षेत्रों से अलग बनाती है, जिसे GI टैग कानूनी सुरक्षा और वैश्विक पहचान देगा।
जिला प्रशासन हैंडलूम क्षेत्र को क्लस्टर मॉडल में विकसित करने पर भी काम कर रहा है। इसके तहत विभिन्न ब्लॉकों में बुनकर समूहों को संगठित किया जा रहा है ताकि उन्हें डिजाइन सहायता, गुणवत्ता परीक्षण, धागे की आपूर्ति और मार्केटिंग जैसी सुविधाएँ एक स्थान पर उपलब्ध हों। इससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होगा। बागपत में बुनाई का काम पीढ़ियों से चलता आया है और यह सैकड़ों परिवारों की आजीविका का आधार है। यह कदम इस परंपरा को संरक्षित रखने और आधुनिक बाजार से जोड़ने में मदद करेगा।
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इस प्रक्रिया से स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को विशेष लाभ मिलेगा। अब वे केवल पारंपरिक मजदूर नहीं, बल्कि GI Registered User के रूप में अधिकृत उत्पादक होंगी। इससे उनके उत्पादों की बाजार विश्वसनीयता बढ़ेगी और आय में सीधी वृद्धि होगी। प्रशासन का मानना है कि यह पहल आने वाले वर्षों में ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक शक्ति बढ़ाने और स्थानीय उद्योग को मजबूत करने में निर्णायक भूमिका निभाएगी।
आने वाले समय में और भी पारंपरिक उत्पादों की पहचान की जाएगी और उन्हें GI टैग प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा, जिससे जिले की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी। यह पहल बताती है कि यदि स्थानीय कला और कौशल को सही नीति और संवेदनशील प्रशासनिक नेतृत्व मिले, तो वह न केवल संरक्षित रह सकता है बल्कि नई आर्थिक शक्ति के रूप में उभर भी सकता है। बागपत की बुनकर महिलाएँ अब इसी नई यात्रा पर आगे बढ़ रही हैं, जहाँ परंपरा सम्मान में बदल रही है और हुनर पहचान बन रहा है।
FAQs (Hindi)
प्रश्न 1: बागपत की महिला बुनकरों को GI अधिकृत यूजर पंजीकरण से क्या लाभ मिलेगा?
उत्तर: GI अधिकृत यूजर बनने से महिला बुनकरों को उनके उत्पादों पर कानूनी अधिकार मिलता है, जिससे नकली या बाहरी ब्रांड उनके डिज़ाइन का दुरुपयोग नहीं कर सकते। इससे उन्हें बाज़ार में विश्वसनीयता, बेहतर कीमत और सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिलता है।
प्रश्न 2: बुनकर कार्ड क्या है और यह महिलाओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: बुनकर कार्ड बुनकरों की आधिकारिक पहचान है। इसके माध्यम से उन्हें धागे पर सब्सिडी, प्रशिक्षण, लोन, मार्केटिंग सहयोग और विभिन्न सरकारी हस्तकरघा योजनाओं का सीधा फायदा मिलता है।
प्रश्न 3: GI पंजीकरण प्रक्रिया कैसे पूरी की जाती है?
उत्तर: GI पंजीकरण के लिए GI-3A फॉर्म भरकर 10 रुपये शुल्क जमा किया जाता है। उत्पादक को यह प्रमाण देना होता है कि वह निर्दिष्ट क्षेत्र में पारंपरिक उत्पाद का निर्माण करता है। आवेदन GI रजिस्ट्री, चेन्नई को भेजा जाता है और यह 10 वर्षों के लिए मान्य रहता है।
प्रश्न 4: बागपत हैंडलूम को GI टैग मिलने से क्या बदल जाएगा?
उत्तर: GI टैग मिलने पर बागपत हैंडलूम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विशिष्ट पहचान, गुणवत्ता की सुरक्षा, नकली उत्पादों पर रोक और बेहतर मूल्य मिलने जैसे लाभ मिलेंगे।
प्रश्न 5: भारत के हैंडलूम क्षेत्र में महिलाओं की क्या भूमिका है?
उत्तर: भारतीय हैंडलूम क्षेत्र में लगभग 72% बुनकर महिलाएँ हैं। यह कार्य उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और ग्रामीण आजीविका देता है, इसलिए कई सरकारी योजनाएँ महिला बुनकरों पर केंद्रित हैं।
प्रश्न 6: राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस 7 अगस्त को मनाया जाता है ताकि स्वदेशी आंदोलन की विरासत को सम्मान दिया जा सके और देश की बुनकर समुदाय के योगदान को पहचान मिल सके।
प्रश्न 7: सरकार हैंडलूम क्षेत्र के लिए कौन-सी प्रमुख योजनाएँ संचालित करती है?
उत्तर: प्रमुख योजनाओं में National Handloom Development Programme (NHDP), Raw Material Supply Scheme (RMSS), Handloom Marketing Assistance, MUDRA Loan, Handloom Mark और India Handloom Brand शामिल हैं।
प्रश्न 8: MUDRA लोन योजना से बुनकरों को क्या लाभ मिलता है?
उत्तर: MUDRA योजना बुनकरों को 6% ब्याज दर पर सस्ते ऋण उपलब्ध कराती है। व्यक्तिगत बुनकरों को 25,000 रुपये तक और संस्थाओं को 20 लाख रुपये तक मार्जिन मनी सहायता मिल सकती है।
प्रश्न 9: Raw Material Supply Scheme (RMSS) कैसे मदद करती है?
उत्तर: RMSS के तहत बुनकरों को गुणवत्तापूर्ण यार्न और मिश्रित धागा सब्सिडी दरों पर उपलब्ध कराया जाता है, जिससे उन्हें कम लागत में उच्च गुणवत्ता का उत्पादन करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 10: बागपत प्रशासन ने पहले किन उत्पादों को GI टैग दिलाया है?
उत्तर: बागपत प्रशासन पहले ही जिले के गुड़, रटौल आम और होम फर्निशिंग उत्पादों को GI टैग दिला चुका है, जिससे उनकी मांग और बाजार मूल्य में वृद्धि हुई है।
प्रश्न 11: Workshed Scheme से बुनकरों को क्या फायदा होता है?
उत्तर: इस योजना के तहत बुनकरों को घर के पास समर्पित कार्यस्थल मिलता है, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ती है और काम की गुणवत्ता सुधरती है। महिला, BPL, SC/ST और दिव्यांग बुनकरों को 100% सहायता दी जाती है।
प्रश्न 12: भारतीय हैंडलूम उत्पाद वैश्विक बाजार में क्यों लोकप्रिय हैं?
उत्तर: भारतीय हैंडलूम उत्पाद प्राकृतिक रंगों, पारंपरिक तकनीक, विविध बुनाई शैलियों और सांस्कृतिक मूल्य के कारण विश्वभर में लोकप्रिय हैं। दुनिया का 95% हाथ से बुना कपड़ा भारत में बनाया जाता है।
प्रश्न 13: बागपत हैंडलूम क्लस्टर मॉडल कैसे काम करता है?
उत्तर: क्लस्टर मॉडल डिजाइन सहायता, गुणवत्ता परीक्षण, यार्न आपूर्ति और मार्केटिंग सपोर्ट को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराता है, जिससे उत्पादन लागत घटती है और बुनकरों की आय बढ़ती है।
प्रश्न 14: Handloom Mark और India Handloom Brand क्या हैं?
उत्तर: Handloom Mark उत्पाद की प्रामाणिकता दर्शाता है, जबकि India Handloom Brand उच्च गुणवत्ता वाले हैंडलूम उत्पादों के लिए ब्रांड पहचान प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता और बुनकर दोनों को लाभ मिलता है।
प्रश्न 15: GI टैग पारंपरिक डिज़ाइनों की सुरक्षा कैसे करता है?
उत्तर: GI टैग किसी क्षेत्र की विशिष्ट तकनीक, पैटर्न या उत्पाद पर कानूनी अधिकार देता है। इससे बाहरी लोग बिना अनुमति डिज़ाइन का उपयोग नहीं कर सकते, और स्थानीय समुदाय को आर्थिक लाभ मिलता है।




