उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का एक छोटा सा गांव — ट्यौढ़ी।
सुबह की हल्की ठंड, साइकिल पर लदे अख़बार और समय से पहले ज़िम्मेदारियों का बोझ। यही वह दृश्य था, जिसमें अमन कुमार का बचपन बीता। पढ़ाई जारी रखने के लिए किशोरावस्था में गांव-गांव अख़बार बांटना उनके लिए कोई रोमांचक अनुभव नहीं था, बल्कि मजबूरी थी। आर्थिक तंगी, सामाजिक भेदभाव और अवसरों की कमी — इन सबके बीच शिक्षा को थामे रखना अपने आप में एक संघर्ष था।
आज वही अमन कुमार वर्ष 2025 के iVolunteer Youth Champion Award से सम्मानित हैं — यह सम्मान हर साल देश के केवल एक युवा को दिया जाता है। इस बार यह पुरस्कार पहली बार उत्तर प्रदेश के नाम दर्ज हुआ। लेकिन यह कहानी सिर्फ एक पुरस्कार तक सीमित नहीं है। यह उस सोच की कहानी है, जिसमें स्वयंसेवा दया नहीं, बल्कि सिस्टम बदलने का औज़ार बन जाती है।

असमानता, जिसे अमन ने किताबों में नहीं, जीवन में पढ़ा
अमन के लिए “असमानता” कोई किताबी शब्द नहीं था।
यह उनके रोज़मर्रा के अनुभवों में मौजूद थी — कभी संसाधनों की कमी में, कभी अवसरों के अभाव और भेदभाव में। पढ़ाई के साथ काम, और काम के साथ सामाजिक दबाव — यह सब उन्होंने बहुत कम उम्र में देख लिया।
लेकिन यहीं से एक सवाल उनके भीतर आकार लेने लगा:
अगर बच्चे केवल अपनी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण पीछे रह जाते हैं, तो यह व्यक्तिगत विफलता नहीं, समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
यही सवाल आगे चलकर उनके जीवन की दिशा तय करता है।
तयशुदा रास्ते से हटकर लिया गया एक जोखिम भरा फैसला
पढ़ाई पूरी करने के बाद अमन के सामने दिल्ली-एनसीआर में आईटी सेक्टर की नौकरी का विकल्प था। बेहतर वेतन, स्थिर जीवन और शहर की सुविधाएं — सब कुछ उपलब्ध था। लेकिन अमन ने वह रास्ता नहीं चुना।
उन्होंने कॉरपोरेट दुनिया को अलविदा कहा, यहां तक कि सीईओ पद से भी इस्तीफा दिया, और वापस अपने जिले लौट आए। उनका मानना था कि जिन समस्याओं को उन्होंने जिया है, उनका समाधान भी वहीं से निकलेगा।
उनके लिए स्वयंसेवा “अच्छा काम” करने का तरीका नहीं था, बल्कि नीति और व्यवस्था से जुड़कर बदलाव लाने का माध्यम था।

स्वयंसेवा, जो सिस्टम से जुड़ती है
युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय की पहल माय भारत (मेरा युवा भारत) से जुड़कर अमन ने स्वयंसेवा को एक संरचनात्मक रूप देना शुरू किया। उन्होंने उड़ान यूथ क्लब की स्थापना की और इसके तहत शुरू हुआ प्रोजेक्ट कॉन्टेस्ट 360।
इस पहल का उद्देश्य सीधा था — ग्रामीण और संसाधन-वंचित युवाओं तक शैक्षिक और करियर अवसरों की जानकारी पहुंचाना।
आज यह प्रयास 83 लाख से अधिक युवाओं तक पहुंच चुका है। अमन का मानना है कि जानकारी तक पहुंच ही पहला बराबरी का कदम है।
मुंबई का मंच और एक राष्ट्रीय संदेश
वर्ष 2025 में मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय समारोह में जब iVolunteer Youth Champion Award के नतीजे घोषित हुए, तो देशभर से आए नीति-निर्माताओं, सामाजिक संगठनों और युवाओं के बीच अमन कुमार का नाम लिया गया।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “असमानता केवल व्यक्तिगत संघर्ष नहीं होती, यह समाज की सामूहिक विफलता का संकेत है। जब किसी बच्चे को उसकी परिस्थितियों के कारण पीछे छोड़ दिया जाता है, तब देश अपनी संभावनाओं का एक हिस्सा खो देता है।”
उन्होंने संस्थानों से आग्रह किया कि युवाओं को केवल लाभार्थी न माना जाए, बल्कि इंपैक्ट डिलीवरी सिस्टम का सक्रिय हिस्सा बनाया जाए।

मंत्रालय स्तर पर मान्यता
राष्ट्रीय सम्मान के बाद अमन को युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन माय भारत मुख्यालय, नई दिल्ली में आमंत्रित किया गया। यहां वरिष्ठ अधिकारियों ने उनके कार्यों की सराहना की और उत्तर प्रदेश के लिए उन्हें माय भारत यूथ मेंटोर की जिम्मेदारी सौंपी।
अमन ने यहां यह स्पष्ट किया कि विकसित भारत 2047 का लक्ष्य तभी संभव है, जब युवाओं के लिए संस्थागत सहभागिता के रास्ते बनाए जाएं और स्वयंसेवा को नागरिक कर्तव्यों से जोड़ा जाए।
जब गांव ने कहा — यह हमारी कहानी है
जब अमन अपने गांव लौटे, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति की वापसी नहीं थी। यह गांव के आत्मसम्मान की वापसी थी।
बागपत के सांसद डॉ. राजकुमार सांगवान और जिलाधिकारी आईएएस अस्मिता लाल ने अमन को सम्मानित किया। जिलाधिकारी ने कहा कि अमन जैसे युवा प्रशासन और समाज के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
ग्राम पंचायत ट्यौढ़ी में बुजुर्गों का आशीर्वाद, युवाओं का उत्साह और सामूहिक गर्व — सब कुछ एक साथ दिखाई दिया।

पंचायत की पहल, जो कहानी को स्थायी बनाती है
अमन की उपलब्धि से प्रेरित होकर ग्राम पंचायत फ़ैजपुर निनाना ने एक अनोखा निर्णय लिया।
पंचायत घर की डिजिटल लाइब्रेरी में अमन के संघर्ष और उपलब्धियों पर आधारित वॉल पेंटिंग बनाई जाएगी, और गांव के एक प्रमुख मार्ग का नाम “यूथ चैंपियन अमन कुमार मार्ग” रखा जाएगा।
ग्राम प्रधान प्रीति देवी कहती हैं, “अख़बार बेचकर पढ़ाई करने से लेकर राष्ट्रीय मंच तक पहुंचने की अमन की यात्रा हर गांव के युवा को यह भरोसा देती है कि परिस्थितियां बाधा नहीं बन सकतीं।”
एक ग्रामीण कहानी, एक वैश्विक संदर्भ
अमन कुमार यूनिसेफ इंडिया यू-रिपोर्टर, यूनेस्को ग्लोबल यूथ कम्युनिटी, सत्यार्थी यूथ नेटवर्क और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों से जुड़े रहे हैं। वे 78वें और 79वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत सरकार के विशेष युवा अतिथि भी रह चुके हैं।
इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने 2026 को ‘सतत विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवक वर्ष’ घोषित किया है। इस संदर्भ में अमन की कहानी यह बताती है कि वैश्विक लक्ष्यों की जड़ें अक्सर छोटे गांवों में होती हैं।





