ग्राम पंचायतें बनी पर्यावरण की साथी — बागपत का बर्तन बैंक मॉडल पूरे प्रदेश के लिए प्रेरणा
बागपत, 06 दिसंबर 2025 — जिले में प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या और ग्रामीण आयोजनों पर अनावश्यक खर्च को देखते हुए बागपत जिला प्रशासन ने ग्राम पंचायतों के सहयोग से “बर्तन बैंक” योजना शुरू की है। इस पहल के तहत पहला बर्तन बैंक 03 नवंबर को ग्वालीखेड़ा में स्थापित हुआ, दूसरा 26 नवंबर को निरपुड़ा में और आज तीसरे बर्तन बैंक का शुभारंभ विकास खंड खेकड़ा के ग्राम काठा में किया गया। जिलाधिकारी अस्मिता लाल ने स्वयं काठा पहुंचकर बर्तन बैंक का निरीक्षण किया और ग्रामीणों से इसकी उपयोगिता पर संवाद किया।
जिलाधिकारी ने कहा कि बर्तन बैंक का उद्देश्य प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के साथ-साथ जिम्मेदारी और सहयोग की संस्कृति को मजबूत करना है। गांवों में विवाह, जन्मदिन, धार्मिक आयोजनों और सामुदायिक कार्यक्रमों में बर्तनों की व्यवस्था अक्सर महंगी और कठिन होती है। ऐसे में पंचायत द्वारा कम शुल्क पर उपलब्ध कराए जाने वाले बर्तन ग्रामीण परिवारों को सीधी राहत देंगे।
बर्तन बैंक में थाली, गिलास, कटोरी, चम्मच, परात, भगौना, बाल्टी, कुकर और बड़े बर्तन सहित आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई गई है। ग्रामीणों का कहना है कि अब उन्हें न तो बर्तन खरीदने की जरूरत पड़ेगी और न ही महंगे किराए की। पंचायत द्वारा तय किराया बाजार दर के आधे के लगभग है, जिससे आयोजनों की लागत में उल्लेखनीय कमी आएगी। ग्वालीखेड़ा में शुरू किए गए पहले बर्तन बैंक का उपयोग ग्रामीण तीन बार कर चुके हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि लोगों में इस पहल के प्रति विश्वास बढ़ रहा है।
जिलाधिकारी की पहल से मिला महंगे किराए और कचरे से छुटकारा — बर्तन बैंक ने दिया ग्रामीण परिवारों को सस्ता, टिकाऊ विकल्प
पहले गांवों में बड़े आयोजनों के बाद प्लास्टिक प्लेटों और गिलास का ढेर लग जाता था, जो नालियों को जाम करता और खेतों में जाकर कचरा बढ़ाता था। ग्रामीणों ने बताया कि प्लास्टिक का उपयोग उनकी इच्छा से अधिक मजबूरी थी, क्योंकि कम समय में बड़ी संख्या में बर्तन उपलब्ध नहीं हो पाते थे। बर्तन बैंक शुरू होने के बाद यह समस्या काफी हद तक समाप्त होती दिख रही है। ग्रामीणों ने राहत व्यक्त करते हुए कहा कि अब उन्हें न तो प्लास्टिक पर निर्भर रहना पड़ेगा और न ही बर्तनों की व्यवस्था को लेकर चिंता करनी होगी।
उद्घाटन के दौरान जिलाधिकारी ने पंचायत सचिवों और प्रधानों को निर्देश दिया कि बर्तनों की उपलब्धता, किराया निर्धारण और वापसी की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रखी जाए। उन्होंने कहा कि बर्तन बैंक से प्राप्त होने वाला शुल्क पंचायत निधि में जमा होगा और इसका उपयोग सफाई, स्ट्रीट लाइट, जल निकासी और अन्य विकास कार्यों में किया जाएगा। उनके अनुसार यह पहल पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पंचायतों की आर्थिक मजबूती का साधन भी बनेगी।
बर्तन बैंक योजना को तीन चरणों में लागू किया जा रहा है। पहले चरण में चयनित पंचायतों में बर्तन बैंक स्थापित किए गए है। दूसरे चरण में प्राप्त सुझावों के आधार पर आवश्यक सुधार किए जाएंगे। तीसरे चरण में इसे पूरे जिले की ग्राम पंचायतों में विस्तारित किया जाएगा। भविष्य में टेंट, गैस सिलेंडर स्टैंड, बड़े पकाने वाले बर्तन और अन्य सामुदायिक उपकरण भी इस व्यवस्था से जोड़े जाने की संभावना है। जिला प्रशासन इस योजना को स्वच्छ भारत मिशन और एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध अभियान के साथ जोड़ रहा है। यह मॉडल संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 12 (जिम्मेदार खपत) और लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) से भी जुड़ा है। गांव स्तर पर ऐसे छोटे-छोटे नवाचार बड़े पर्यावरणीय बदलाव की दिशा में प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
बागपत का अनोखा मॉडल: अब गांवों में शादी-ब्याह होंगे बिना प्लास्टिक, बर्तन बैंक बन रहा नई सोच का प्रतीक
यह योजना विशेष रूप से उन परिवारों के लिए राहत लेकर आई है जिनकी आर्थिक स्थिति सीमित है। शादी या बड़े आयोजनों में बर्तनों की व्यवस्था सबसे भारी खर्च होता था। बर्तन बैंक से यह बोझ काफी कम हो गया। पंचायतों ने भी भरोसा जताया कि वे बर्तन बैंक को जिम्मेदारी से संचालित करेंगी और इसका लाभ सभी को मिलेगा। जिलाधिकारी ने ग्रामीणों से अपील की कि वे अपने सभी आयोजनों में बर्तन बैंक का अधिक से अधिक उपयोग करें और इसे अपने गाँव की पहचान बनाएं। उन्होंने कहा कि प्रशासन लगातार इस योजना की निगरानी करेगा और सफलता के आधार पर इसे सभी गांवों में चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
कुल मिलाकर, बर्तन बैंक योजना जनपद में स्वच्छता, बचत और सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा देने वाली एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में सामने आई है। ग्वालीखेड़ा से शुरू हुई यह व्यवस्था निरपुड़ा और काठा तक पहुंच चुकी है और जल्द ही पूरे जिले में विस्तार की दिशा में अग्रसर है।




