उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चों के लिए स्कूल का मतलब अब तक साफ़ था—पाठ्यपुस्तकें, होमवर्क और परीक्षा का दबाव। मंच पर खड़े होकर बोलना, गाना या अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करना उनके लिए लगभग असंभव-सा लगता था। कई बच्चे अपनी झिझक और डर के कारण अपनी प्रतिभा को कभी पहचान ही नहीं पाते।
लेकिन अब बागपत के कुछ स्कूलों में यह तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है। यहाँ बच्चे सुरों के साथ सीख रहे हैं, ताल के साथ आगे बढ़ रहे हैं और संगीत के ज़रिये खुद को व्यक्त करना सीख रहे हैं। परीक्षा अब केवल तनाव नहीं, बल्कि सीखने और उत्सव का हिस्सा बनने लगी है।
इस बदलाव की शुरुआत एक साधारण लेकिन असरदार सवाल से हुई—क्या शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ़ अच्छे अंक लाना है, या आत्मविश्वासी इंसान बनाना भी?
शिक्षा को मानवीय बनाने की सोच
बागपत की जिलाधिकारी अस्मिता लाल का मानना है कि बच्चों के साथ संवाद किए बिना कोई भी शिक्षा नीति सफल नहीं हो सकती। जब उन्होंने स्कूलों में बच्चों से बातचीत की, तो कई बार देखा कि बच्चे अपनी बात कहते हुए भावुक हो जाते हैं। किसी में आत्मविश्वास की कमी थी, तो कोई मंच से बोलने से डरता था।
यहीं से यह विचार जन्मा कि बच्चों को ऐसा माध्यम दिया जाए, जहाँ वे बिना डर के खुद को व्यक्त कर सकें। संगीत इस दिशा में एक स्वाभाविक विकल्प बना—क्योंकि संगीत भाषा, अंक या पृष्ठभूमि की सीमाएँ नहीं मानता।
इसी सोच के तहत बागपत के दो विद्यालयों और पद्मश्री शंकर महादेवन द्वारा स्थापित शंकर महादेवन अकादमी के बीच एक समझौता हुआ। इसके माध्यम से विद्यार्थियों को अकादमी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहे गए “ग्रो विद म्यूजिक” कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा।
यह कार्यक्रम सिर्फ़ गाना सिखाने तक सीमित नहीं है। इसका उद्देश्य बच्चों में आत्म-अभिव्यक्ति, अनुशासन, सहयोग और रचनात्मक सोच विकसित करना है—वह गुण जो जीवन भर साथ रहते हैं।
ग्रामीण बच्चों के लिए बड़ा अवसर
अक्सर संगीत और कला की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बड़े शहरों तक सीमित रह जाती है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों के बच्चों के लिए ऐसे अवसर दुर्लभ होते हैं। बागपत में शुरू हुई यह पहल इस दूरी को कम करती है।
कार्यक्रम एक वर्ष तक चलेगा और इसमें कुल 34 सत्र होंगे, जिनमें नियमित कक्षाएँ, अभ्यास सत्र और अंत में एक विशेष प्रस्तुति शामिल है। हर बैच में सीमित संख्या में बच्चों को शामिल किया जाएगा, ताकि हर विद्यार्थी को व्यक्तिगत ध्यान मिल सके।
पूरी तरह निःशुल्क, पूरी तरह समावेशी
इस पहल की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह निःशुल्क है। आम तौर पर लगभग ₹3,500 प्रति विद्यार्थी की लागत वाले इस कार्यक्रम को शंकर महादेवन अकादमी ने बागपत के छात्रों के लिए बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराया है।
यह उन परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है, जो आर्थिक कारणों से अपने बच्चों को कला या संगीत की शिक्षा नहीं दिला पाते। यहाँ प्रतिभा को अवसर मिल रहा है—बिना किसी आर्थिक शर्त के।
कार्यक्रम पूरी तरह डिजिटल माध्यम से संचालित होगा। बच्चों को एक क्लाउड-आधारित लर्निंग प्लेटफॉर्म तक पहुँच मिलेगी, जहाँ वीडियो लेसन, अभ्यास सामग्री और प्रगति ट्रैकिंग की सुविधा होगी। यह पहल न सिर्फ़ संगीत शिक्षा को सुलभ बनाती है, बल्कि बच्चों को डिजिटल कौशल से भी जोड़ती है—जो आज के समय में उतना ही ज़रूरी है।
आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर असर
शिक्षाविदों के अनुसार, संगीत बच्चों में एकाग्रता बढ़ाने, तनाव कम करने और भावनात्मक संतुलन विकसित करने में मदद करता है। जब बच्चे समूह में गाते हैं या प्रस्तुति देते हैं, तो वे सहयोग और अनुशासन भी सीखते हैं।
कार्यक्रम के अंत में होने वाली विशेष प्रस्तुति कई बच्चों के लिए पहला मंच अनुभव होगी। पहली बार माइक हाथ में लेकर खड़ा होना, पहली बार तालियों की आवाज़ सुनना—यह अनुभव उनके आत्मविश्वास को लंबे समय तक मज़बूत करेगा।
जब बच्चे संगीत से जुड़ते हैं, तो उसका असर घर और स्कूल दोनों जगह दिखाई देता है। शिक्षक बच्चों को ज़्यादा खुला और सक्रिय पाते हैं। अभिभावकों को भरोसा मिलता है कि उनके बच्चों को सुरक्षित और सकारात्मक माहौल में सीखने का अवसर मिल रहा है।
यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की उस भावना के अनुरूप है, जो कला, संस्कृति और कौशल-आधारित शिक्षा को मुख्यधारा में लाने की बात करती है।
एक मॉडल, जो आगे बढ़ सकता है
शंकर महादेवन अकादमी एक नॉट-फॉर-प्रॉफिट ट्रस्ट के रूप में देश और दुनिया में संगीत शिक्षा को सुलभ बना रही है। बागपत में शुरू हुआ यह प्रयोग दिखाता है कि जब प्रशासन और संस्थाएँ मिलकर काम करती हैं, तो शिक्षा सचमुच परिवर्तनकारी बन सकती है।
शायद आने वाले समय में और ज़िले भी इस मॉडल को अपनाएँ। और शायद तब शिक्षा केवल परीक्षा की तैयारी नहीं, बल्कि खुद को पहचानने की यात्रा बन जाए।





